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Thursday, February 19, 2009

दिल्ली ६ का प्रीमियर

१९ फ़रवरी को दिल्ली ६ का प्रीमियर था और इसका पुरा स्टार कास्ट, पीवीआर प्रिया पर इकठा था. मुफ्त की पेप्सी और पोपकोर्न एन्जॉय करते हुए यह फ़िल्म देखि और आपके लिए पेश इसका ठेठ अंदाज़ में रिव्यू-

राकेश मेहरा की नई फ़िल्म वास्तविकता के नजदीक होते हुए भी इससे काफ़ी दूर है. पुरानी दिल्ली के ताने बाने पर बनी यह फ़िल्म दिल्ली की कई खाशियत को दिखाता है.
नायक रौशन (अभिषेक बच्चन) अमेरिका में पला बढ़ा, और अपनी दादी वहीदा रहमान के साथ दिल्ली आता है और उसके बाद राम, राजनीती और दिल्ली ६ की कहानी चल पड़ती है...
यह फ़िल्म मीडिया की वर्त्तमान अवस्था पर एक कमेन्ट है. आईबीएन सेवेन पर आए काले बन्दर की कहानी पर फ़िल्म आधारित है...
कांस्टेबल के रोल में विजय राज दिल्ली के असली कांस्टेबल दिखे, जहा पुलिस में सिर्फ़ पैसा चलता है....जय लक्ष्मी मैया की.....दिल्ली के संकीर्ण मनोस्तिथि को कुछ हद तक दिखाने में सफर हुई है यह फ़िल्म. सोनम कपूर काफी खुबसूरत दिखी और फ़िल्म डिजाईन पर अच्छी मेहनत की गई है. ऐ.आर. रहमान का संगीत कर्णप्रिय है गेंदा फूल ने फ़िल्म में जान भरी है, और मसकली कबूतर के बहाने सोनल के ठुमके देखने का मौका मिला.

लेकिन फ़िल्म पूर्णतः बकवास है और इसे देखकर कम से कम पैसे तो वसूल नही होंगे.

Wednesday, February 18, 2009

वैलेंटाइन का नया गिफ्ट: देव डी के सौजन्य से

इमोसनल अत्याचार तो बहुत पहले से मेरे साथ होता रहा है. जैसे ही मुझे पता चला की अनुराग ने इमोसनल अत्याचार पर नई फ़िल्म बनाई है, मैंने अपने आपको रोक न सका और झट से देव डी देखने का फ़ैसला कर लिए. इससे मुझे पता चला की आजकल बहुत ज्यादा इमोसनल अत्याचार हो रहा है, पेश है यह रपट अविनाश के मोहल्ले से-
उसे मीठे पानी के झरने की आवाज सुनाई दे रही थी। उसने उसी दिशा में देखा जहां से झरने की आवाज आ रही थी। वहां दिलकश हरा एक गुनगुनी धूप में नहा रहा था। उस हरे के किसी लहरदार चुन्नी की तरह लहराने में हरे के पीछे छिपा एक गोल घंटी नुमा कोमल पीला किसी मुलायम रोशनी के धब्बे की तरह डोल रहा था। फुहारों की तरह उड़ती हवा में झरने की ठंडक थी। धीरे-धीरे धूप तीखी होती है और पीला झुलस जाता है। हरी शाख से भूरा झरने लगता है। वह सोचता है, आज की रात वह सबसे उदास पंक्तियां लिखेगा।वह स्वप्न की दुनिया से बाहर आ चुका था। उसके सामने प्रेम नहीं, प्रेम का बाजार है।वह लाखों ग्रीटिंग कार्ड में से कोई सबसे खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड चुनना चाहता था। सुबह से शाम तक वह ढूंढ़ता ही रहा। इतने सारे कार्ड्स, इतने सारे फूल, इतनी सारी खुशबुएं। उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने सोचा, वह अपने हाथ से एक ग्रीटिंग कार्ड बनाएगा।अचानक उसकी नज़र चमचमाते कांच के पीछे एकदम ताजा-चमकीली चेरी पर गई। वह इतनी ताजा लग रही थी कि उसे मुंह में पानी आ गया। वह चेरी का स्वाद याद करने लगा और सोचने लगा, उसने आखिरी बार चेरी कब चखी थी।वह शो रूम में घुसा और चेरी की ओर हाथ बढ़ाया।वह देर तक एक फीकी हंसी हंसता रहा।उसके हाथ में जो पैकेट था, वह चेरी फ्लेवर कंडोम का था।पता नहीं उसे क्या सूझा, उसने एक सिंपल सा कार्ड खरीदा और पैकेट से एक कंडोम निकालकर कार्ड के अंदर चिपका दिया। जैसे विज्ञापन वाले अखबार और पत्रिकाओं में शैम्पू के पैकेट चिपकाते हैं।कंडोम चिपकाने के बाद उसने कार्ड पर लिखा - टु पारो, फ्राम देव. डी!
अविनाश के मुहल्ले से साभार