एंड्र्यू बिचेल हम हिंदुस्तानियों के लिए आईना लाया है। दो दिनों से IPL में हंगामा सा चल रहा है। कोलकाता की टीम के एक खिलाड़ी, संभवतः अजित अगरकर, ने एक कोचिंग स्टाफ पर आरोप लगाया है की उन्होंने उसे "Hey you Indian! Do what you are told to do" कह के संबोधित किया। इंटरनेट और ब्लॉग पर जैसे आंधी आ गयी हो। पर मैं खुश हूं। नहीं, आह्लादित ज्यादा उचित शब्द होगा। अंधराष्ट्रवादी अभी तक गालियां दे चुके होंगे। मैं ऐसा क्यूं कह रहा हूं, इसके लिए कारण भी ढूंढ चुके होंगे। दिमाग़ लगाने की ज़रुरत नहीं। मैं खुद ही बताता हूं। मैं खुश हूं क्यूं कि मैं 'बिहारी' हूं। 10 साल पहले अपने coaching से बाहर निकलते ही बस स्टैंड पर मुझे इसका एहसास हुआ था। ब्लू लाइन बस के एक जाट कंडक्टर ने मेरी पहचान एक झटके में बदल दी थी। पहली बार बुरा नहीं लगा। जान ही नहीं पाया कि कहने के पीछे क्या मक़सद था। अभी 12th पास करके आया ही था। फिर तो ये सिलसिला ही हो गया। किसी कुत्ते को सड़क पार करते देख, ए! बिहारी - रिक्शेवाले से साइड लेते हुए, ए! बिहारी - बहुत बुरा लगता था। पर आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि ये बिहारी, जो जाट कंडक्टर कि बात पर भड़कते थे, अपने गांव में, ए! सुदरवा, ए! गुअरवा, ए! चम...वा बोल के प्रफुल्लित होते थे। रिक्शेवाले को दुःख नहीं होता। पटना से दिल्ली तक का सफ़र, ए! सुदरवा से ए! बिहारी तक का सफ़र है।
आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि गुज़रे साल दिल्ली में आयोजित Afro-India शिखर सम्मलेन में पश्चिमी अफ्रीका के एक राजदूत को एक संभ्रांत दिखने वाले हिंदुस्तानी कैमरामैन ने, ए! कलुवे हट... कहा था। पश्चिमी मुल्कों से कहीं ज्यादा यहां जिल्लत झेलनी पड़ती है। कैमरामैन ने उस दिन टोकने पर मुझे आंखें दिखाई थीं। आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि चार साल पहले पूर्वी उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले एक इंस्पेक्टर ने नोएडा में मेरे ऑटो चालक को, ए! दुसधवा बोला था। उसकी ग़लती ये थी कि वो रात के 11 बजे मुझे और मेरे दो मित्रों को सिनेमा हॉल से घर ला रहा था। इंस्पेक्टर संभ्रांत हिंदू कॉलेज का पूर्व छात्र था। ऑटो वाले को दो थप्पड़ जड़ के 300 रूपये छीन लिये थे।
आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि अगरकर के राज्य के लोग ‘भाइयों’ को मारने में आनंदित होते हैं। अगरकर जिम्मेदार नहीं हैं। पर अगरकर उपमा हैं। आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि जब वरुण गाँधी ने मुसलमानों को ‘कटुआ’ कहा था,लोग खी खी हंस रहे थे। ‘क्या गलत बोला वरुण ने’ कहते हुए पान थूक रहे थे। आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि देश कि सबसे संभ्रांत कहे जाने वाली कौम, बंगाली, हर दूसरे कौम को एक विशेष नाम से बुलाती है। बिहारी को ए! खोट्टा, मारवाड़ी को ए! माडू, उरिया को साला उडे! बुलाते सकुचाते नहीं हैं। देश की सबसे संभ्रांत कौम देश की वाहिद कौम भी है, जिसने एक अलग नस्ल की उत्पत्ति की है: अबंगाली!
पर आज मैं खुश हूं। बिचेल हों या मूट हों, उनको माल्यार्पण करना चाहिए। कोलकाता के K C Das का मशहूर सोंदेश खिलाना चाहिए। बिचेल आईना लाये हें। उसे विक्टोरिया मेमोरियल पे लगाइए। उसे गोलघर पे लगाइए। उसे मरीन ड्राइव पे लगाइए। उसे पीलीभीत ले जाइए...