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Monday, September 21, 2009

Selfness of love

Physically, Health is Wealth;
Mentally, Character is Wealth;
Spiritually, Love is Wealth...and Spirutually is all about attaining Nirvana that is true love to self with possesivness.

Man likea (to impress) the weaker woman wherein women love (to posses) the stronger man.

Though Love is unconditional Acceptance but love like happiness, beauty and perfection lies in the fulfilment of our natural possesiveness. I would crystalilises this noble spirit of love as extremely difficult realisation that something other than oneself is real...Love like art and moral is the discovery of reality.
Love in the form in which it exists in society, is nothing but the exchange of two fantasies and the superficial contact of two bodies. These love can never be true one.

Wednesday, September 2, 2009

दिल की भावना

पेड़ों से जब पत्ते गिरते हैं तो, उसको "पतझड़" कहते हैं, और जब नये फूल खिलते हैं तो, उसको "वसन्त" कहते हैं, दूर मिलने का आभास लिए जब धरती गगन मिलते हैं, तो उसे "क्षितिज" कहते हैं पर, तेरा मेरा मिलना क्या है...? इसे न तो "वसन्त", न "पतझड़", और न "क्षितिज" कहते हैं! यह तो सिर्फ़ एक अहसास है, अहसास, कुछ नही, एक पगडंडी है, तुमसे मुझ तक आती हुई, मैं और तुम, तुम और मैं, जिसके आगे शून्य है सब...

Thursday, August 27, 2009

What Country Song Tells Your Story? on Facebook

What Country Song Tells Your Story?: "You have recently found yourself in a tough spot and are trying to figure out who you are. You have so many dreams and goals but they just seem so far away right now... You may feel a little bit alone, and that its never going to get better, but deep down inside you have the strength to overcome anything. You are a very strong, confindent person. You are very passionate about life and you chase dreams till you reach them. Sometimes things don't work out for the best but you take it as a lesson learned, and keep climbing."

Friday, August 7, 2009

मेरा दर्द

हजारो ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मैं पिछले कुछ दिनों से पटना में हूँ. यहाँ BSNL के थ्रीजी नेटवर्क के प्रचार के सिलसिले में आया था. पहली बार बिहार में काम करने के लिए आया. बहुत खुश था मैं. लेकिन हाय रे मेरी किस्मत. यहाँ के निकम्मे और भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों ने मेरी आशाओ पर तुषारापात कर दिया. मै आज तक कभी फ़ेल नही हुआ, लेकिन बिहार के अनुभव ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया. पहली बार पता चला कि बिहार पिछ्डा क्यो हुआ है.

क्रमशः

Friday, June 5, 2009

भविष्य

दुनिया बहुत बड़ी है,
प्राकृतिक संसाधन बहुत कम है ;
हमारे लिए भविष्य ने क्या बचा रखा है;
धुएं से भरा आकाश और जमीन पर जहर उगल रहे मशीन;
सांस लेने में घुटन और बीमार दुनिया !

जो मैं आज कर सकता हूँ,
क्या मैं वो सब कुछ कल भी कर पाउँगा?
क्या मैं हरी भरी दुनिया कल भी देख पाउँगा;
क्या होगा जब धरती पर एक भी पेड़ नहीं होंगे;
जंगली जानवर और नदी में पानी नहीं होंगे;
एक वीरान दुनिया, शमसान नहीं हो जायेगी?

Friday, May 15, 2009

आज मैं खुश हूं।

एंड्र्यू बिचेल हम हिंदुस्तानियों के लिए आईना लाया है। दो दिनों से IPL में हंगामा सा चल रहा है। कोलकाता की टीम के एक खिलाड़ी, संभवतः अजित अगरकर, ने एक कोचिंग स्टाफ पर आरोप लगाया है की उन्होंने उसे "Hey you Indian! Do what you are told to do" कह के संबोधित किया। इंटरनेट और ब्लॉग पर जैसे आंधी आ गयी हो। पर मैं खुश हूं। नहीं, आह्लादित ज्यादा उचित शब्द होगा। अंधराष्ट्रवादी अभी तक गालियां दे चुके होंगे। मैं ऐसा क्यूं कह रहा हूं, इसके लिए कारण भी ढूंढ चुके होंगे। दिमाग़ लगाने की ज़रुरत नहीं। मैं खुद ही बताता हूं। मैं खुश हूं क्यूं कि मैं 'बिहारी' हूं। 10 साल पहले अपने coaching से बाहर निकलते ही बस स्टैंड पर मुझे इसका एहसास हुआ था। ब्लू लाइन बस के एक जाट कंडक्टर ने मेरी पहचान एक झटके में बदल दी थी। पहली बार बुरा नहीं लगा। जान ही नहीं पाया कि कहने के पीछे क्या मक़सद था। अभी 12th पास करके आया ही था। फिर तो ये सिलसिला ही हो गया। किसी कुत्ते को सड़क पार करते देख, ए! बिहारी - रिक्शेवाले से साइड लेते हुए, ए! बिहारी - बहुत बुरा लगता था। पर आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि ये बिहारी, जो जाट कंडक्टर कि बात पर भड़कते थे, अपने गांव में, ए! सुदरवा, ए! गुअरवा, ए! चम...वा बोल के प्रफुल्लित होते थे। रिक्शेवाले को दुःख नहीं होता। पटना से दिल्ली तक का सफ़र, ए! सुदरवा से ए! बिहारी तक का सफ़र है।

आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि गुज़रे साल दिल्ली में आयोजित Afro-India शिखर सम्मलेन में पश्चिमी अफ्रीका के एक राजदूत को एक संभ्रांत दिखने वाले हिंदुस्तानी कैमरामैन ने, ए! कलुवे हट... कहा था। पश्चिमी मुल्कों से कहीं ज्यादा यहां जिल्लत झेलनी पड़ती है। कैमरामैन ने उस दिन टोकने पर मुझे आंखें दिखाई थीं। आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि चार साल पहले पूर्वी उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले एक इंस्‍पेक्टर ने नोएडा में मेरे ऑटो चालक को, ए! दुसधवा बोला था। उसकी ग़लती ये थी कि वो रात के 11 बजे मुझे और मेरे दो मित्रों को सिनेमा हॉल से घर ला रहा था। इंस्‍पेक्टर संभ्रांत हिंदू कॉलेज का पूर्व छात्र था। ऑटो वाले को दो थप्पड़ जड़ के 300 रूपये छीन लिये थे।

आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि अगरकर के राज्य के लोग ‘भाइयों’ को मारने में आनंदित होते हैं। अगरकर जिम्मेदार नहीं हैं। पर अगरकर उपमा हैं। आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि जब वरुण गाँधी ने मुसलमानों को ‘कटुआ’ कहा था,लोग खी खी हंस रहे थे। ‘क्या गलत बोला वरुण ने’ कहते हुए पान थूक रहे थे। आज मैं खुश हूं। मैं खुश हूं क्यूंकि देश कि सबसे संभ्रांत कहे जाने वाली कौम, बंगाली, हर दूसरे कौम को एक विशेष नाम से बुलाती है। बिहारी को ए! खोट्टा, मारवाड़ी को ए! माडू, उरिया को साला उडे! बुलाते सकुचाते नहीं हैं। देश की सबसे संभ्रांत कौम देश की वाहिद कौम भी है, जिसने एक अलग नस्ल की उत्पत्ति की है: अबंगाली!

पर आज मैं खुश हूं। बिचेल हों या मूट हों, उनको माल्यार्पण करना चाहिए। कोलकाता के K C Das का मशहूर सोंदेश खिलाना चाहिए। बिचेल आईना लाये हें। उसे विक्टोरिया मेमोरियल पे लगाइए। उसे गोलघर पे लगाइए। उसे मरीन ड्राइव पे लगाइए। उसे पीलीभीत ले जाइए...

Thursday, February 19, 2009

दिल्ली ६ का प्रीमियर

१९ फ़रवरी को दिल्ली ६ का प्रीमियर था और इसका पुरा स्टार कास्ट, पीवीआर प्रिया पर इकठा था. मुफ्त की पेप्सी और पोपकोर्न एन्जॉय करते हुए यह फ़िल्म देखि और आपके लिए पेश इसका ठेठ अंदाज़ में रिव्यू-

राकेश मेहरा की नई फ़िल्म वास्तविकता के नजदीक होते हुए भी इससे काफ़ी दूर है. पुरानी दिल्ली के ताने बाने पर बनी यह फ़िल्म दिल्ली की कई खाशियत को दिखाता है.
नायक रौशन (अभिषेक बच्चन) अमेरिका में पला बढ़ा, और अपनी दादी वहीदा रहमान के साथ दिल्ली आता है और उसके बाद राम, राजनीती और दिल्ली ६ की कहानी चल पड़ती है...
यह फ़िल्म मीडिया की वर्त्तमान अवस्था पर एक कमेन्ट है. आईबीएन सेवेन पर आए काले बन्दर की कहानी पर फ़िल्म आधारित है...
कांस्टेबल के रोल में विजय राज दिल्ली के असली कांस्टेबल दिखे, जहा पुलिस में सिर्फ़ पैसा चलता है....जय लक्ष्मी मैया की.....दिल्ली के संकीर्ण मनोस्तिथि को कुछ हद तक दिखाने में सफर हुई है यह फ़िल्म. सोनम कपूर काफी खुबसूरत दिखी और फ़िल्म डिजाईन पर अच्छी मेहनत की गई है. ऐ.आर. रहमान का संगीत कर्णप्रिय है गेंदा फूल ने फ़िल्म में जान भरी है, और मसकली कबूतर के बहाने सोनल के ठुमके देखने का मौका मिला.

लेकिन फ़िल्म पूर्णतः बकवास है और इसे देखकर कम से कम पैसे तो वसूल नही होंगे.

Wednesday, February 18, 2009

वैलेंटाइन का नया गिफ्ट: देव डी के सौजन्य से

इमोसनल अत्याचार तो बहुत पहले से मेरे साथ होता रहा है. जैसे ही मुझे पता चला की अनुराग ने इमोसनल अत्याचार पर नई फ़िल्म बनाई है, मैंने अपने आपको रोक न सका और झट से देव डी देखने का फ़ैसला कर लिए. इससे मुझे पता चला की आजकल बहुत ज्यादा इमोसनल अत्याचार हो रहा है, पेश है यह रपट अविनाश के मोहल्ले से-
उसे मीठे पानी के झरने की आवाज सुनाई दे रही थी। उसने उसी दिशा में देखा जहां से झरने की आवाज आ रही थी। वहां दिलकश हरा एक गुनगुनी धूप में नहा रहा था। उस हरे के किसी लहरदार चुन्नी की तरह लहराने में हरे के पीछे छिपा एक गोल घंटी नुमा कोमल पीला किसी मुलायम रोशनी के धब्बे की तरह डोल रहा था। फुहारों की तरह उड़ती हवा में झरने की ठंडक थी। धीरे-धीरे धूप तीखी होती है और पीला झुलस जाता है। हरी शाख से भूरा झरने लगता है। वह सोचता है, आज की रात वह सबसे उदास पंक्तियां लिखेगा।वह स्वप्न की दुनिया से बाहर आ चुका था। उसके सामने प्रेम नहीं, प्रेम का बाजार है।वह लाखों ग्रीटिंग कार्ड में से कोई सबसे खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड चुनना चाहता था। सुबह से शाम तक वह ढूंढ़ता ही रहा। इतने सारे कार्ड्स, इतने सारे फूल, इतनी सारी खुशबुएं। उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने सोचा, वह अपने हाथ से एक ग्रीटिंग कार्ड बनाएगा।अचानक उसकी नज़र चमचमाते कांच के पीछे एकदम ताजा-चमकीली चेरी पर गई। वह इतनी ताजा लग रही थी कि उसे मुंह में पानी आ गया। वह चेरी का स्वाद याद करने लगा और सोचने लगा, उसने आखिरी बार चेरी कब चखी थी।वह शो रूम में घुसा और चेरी की ओर हाथ बढ़ाया।वह देर तक एक फीकी हंसी हंसता रहा।उसके हाथ में जो पैकेट था, वह चेरी फ्लेवर कंडोम का था।पता नहीं उसे क्या सूझा, उसने एक सिंपल सा कार्ड खरीदा और पैकेट से एक कंडोम निकालकर कार्ड के अंदर चिपका दिया। जैसे विज्ञापन वाले अखबार और पत्रिकाओं में शैम्पू के पैकेट चिपकाते हैं।कंडोम चिपकाने के बाद उसने कार्ड पर लिखा - टु पारो, फ्राम देव. डी!
अविनाश के मुहल्ले से साभार