दिन के ढलने के बाद,
साँझ की बेला आती है,
फिर वो रात में तब्दील हो जाती है...
रात क्या है, एक दिन का अंत,
या नए दिन के शुरुआत की आहट,
यह तो है
नए संभावनाओ के जन्म का सूचक,
रात्रि प्रहर आती है,
अपने साथ विश्राम का सन्देश लाती है
नयी आशाओ के द्वार खोलते हुए,
निद्रा में ले जाती है…..
भूतकाल के सफलताओ और असफलताओ से परे
प्रगति का मार्ग सुझाती है......
आसमान में चमकते तारे चंदा मामा को मार्ग दिखाते है
कई और ग्रह के वासी धरती पर घुमने को आते है
इस धरती की खूबसूरती और छटा देख कर
यहाँ रहने को ललचाते है..
टूटते तारो को देखकर भाग्य का लेखा लगते है
तो चाँद के बदलते स्वरुप से प्रकृति
अपने रंग दिखाती है
Sunday, June 13, 2010
Tuesday, April 20, 2010
भाषा का विवाद जरुरी है - भारतीय भाषाए बनाम अंग्रेजी
अंग्रेजी में बोलने-सोचने वाले पांच-दस करोड़ लोग ही उद्योग-व्यापार, बाजार और कॉरपोरेट दुनिया की बागडोर संभाले हुए हैं। लेकिन यह एक औपनिवेशिक तलछट है जो बाजार व लोकतांत्रिक चाहतों के विस्तार के साथ एक दिन बहुरंगी, देशज भारतीयता में समाहित हो जाएगी। आज का मध्यम वर्ग अपने भोग विलास में अपने संस्कृति, सभ्यता और भाषा को भूलता जा रहा है. गरीबी और अमीरी की खाई बढती जा रही है. क्षेत्रीय भाषाये जहां देश में वित्तीय बाजार की पहुंच को बढ़ाएगा, वहीं महज उपभोक्ता, अन्नदाता, कच्चे माल व पुर्जों के निर्माता की अभिशप्त स्थिति से निकालकर हिंदी समाज को उद्यशीलता के आत्मविश्वास से भरने की कोशिश भी करेगा।
हमें यकीन है कि हिंदी समाज में वो सामर्थ्य है, यहां ऐसे लोग हैं जो अंदर-ही-अंदर विराट सपनों को संजोए हुए हैं, लेकिन मौका व मंच न मिल पाने के कारण कहीं किसी कोने में दुबके पड़े हैं। उन्हें किसी मौके व मंच का इंतजार है। यकीनन हिंदी समाज के खंडित आत्मविश्वास को लौटाना, यहां घर कर चुकी परम संतोषी पलायनवादी मानसिकता को तोड़ना, जनमानस में छाए दार्शनिक खोखलेपन को नए सिरे से भरना, उसे हर तरह के ज्ञान से लबरेज करना पहाड़ को ठेलने जैसा मुश्किल काम है। लेकिन हमारा इतिहास बताता है कि हम हमेशा ऐसे संधिकाल से, संक्रमण के ऐसे दौर से विजयी होकर निकले हैं। आजादी की 75वीं सालगिरह यानी 2022 तक अगर भारत को दुनिया की प्रमुख ताकत बनना है तो हिंदी ही नहीं, तमिल, तेलगु, मलयाली, मराठी, गुजराती से लेकर हर क्षेत्रीय समाज को कम से कम ज्ञान व सूचनाओं के मामले में प्रभुतासंपन्न बनाना होगा। नहीं तो तमाम बड़े-बड़े राष्ट्रीय ख्बाव महज सब्जबाग बनकर रह जाएंगे।
हमें यकीन है कि हिंदी समाज में वो सामर्थ्य है, यहां ऐसे लोग हैं जो अंदर-ही-अंदर विराट सपनों को संजोए हुए हैं, लेकिन मौका व मंच न मिल पाने के कारण कहीं किसी कोने में दुबके पड़े हैं। उन्हें किसी मौके व मंच का इंतजार है। यकीनन हिंदी समाज के खंडित आत्मविश्वास को लौटाना, यहां घर कर चुकी परम संतोषी पलायनवादी मानसिकता को तोड़ना, जनमानस में छाए दार्शनिक खोखलेपन को नए सिरे से भरना, उसे हर तरह के ज्ञान से लबरेज करना पहाड़ को ठेलने जैसा मुश्किल काम है। लेकिन हमारा इतिहास बताता है कि हम हमेशा ऐसे संधिकाल से, संक्रमण के ऐसे दौर से विजयी होकर निकले हैं। आजादी की 75वीं सालगिरह यानी 2022 तक अगर भारत को दुनिया की प्रमुख ताकत बनना है तो हिंदी ही नहीं, तमिल, तेलगु, मलयाली, मराठी, गुजराती से लेकर हर क्षेत्रीय समाज को कम से कम ज्ञान व सूचनाओं के मामले में प्रभुतासंपन्न बनाना होगा। नहीं तो तमाम बड़े-बड़े राष्ट्रीय ख्बाव महज सब्जबाग बनकर रह जाएंगे।
Friday, March 26, 2010
मेरी जिंदगी संवार दे
मेरे वजूद में वफ़ा की रौशनी उतार दे,
फिर इतना प्यार दे की मुझे चाहतों में मार दे,
बहुत उदास था उठ कर तेरे पास आगया,
कुछ ऐसी बात कर जो दिल को चैन दे करार दे,
सुना है तरेरी एक नजर सवारती है जिंदगी,
जो हो सके तो आज मेरी जिंदगी संवार दे,
फिर इतना प्यार दे की मुझे चाहतों में मार दे,
बहुत उदास था उठ कर तेरे पास आगया,
कुछ ऐसी बात कर जो दिल को चैन दे करार दे,
सुना है तरेरी एक नजर सवारती है जिंदगी,
जो हो सके तो आज मेरी जिंदगी संवार दे,
Subscribe to:
Posts (Atom)