कर्ण – प्रिय होते है नारे
आँखों में भर देते है सपने
यथार्थ और सपने
दो किनारे है नदी के
थाली के पानी का चाँद
सुन्दर होता है, प्रकाशमान नहीं
जिस तरह सपने में प्राप्त धन से
सुधारी नहीं जा सकती स्थिति
उसी तरह
खून देनेवालों को
नहीं मिली आज़ादी
महान कहने से
नहीं बना देश महान
जय जवान जय किसान के जाप से
अमर शहीदों के प्रियजनों के
नहीं थामे बहते आँसू
हालत नहीं बदले किसानो के
रूका नहीं सिलसिला आत्महत्याओं का
शोर मचने से
नहीं हुआ फीलगुड
समाजवाद और सामाजिक न्याय के उद्घोष
बुधिया – जुम्मन के जीवन – स्तर को
नहीं बदल सके
उसी तरह
बेअमल घोषणाओं से
विकास नहीं होगा
बढ़ेगी घोषणाओं की संख्या
लंबी होगी फेहरिस्त
कूड़े के ढेर की तरह
गली – मोहल्ले में नज़र आयेंगी
शिलान्यासों की समाधियाँ!
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